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श्राद्ध श्राद्ध पक्ष पितरों की तृप्ति और उनकी प्रसन्नता के लिए आश्विन मास के पूरे कृष्णपक्ष में श्राद्ध किया जाता है। समयानुसार श्राद्ध करने से कुल में कोई दुखी नहीं रहता। पितरों की पूजा करके मनुष्य आयु, पुत्र, यश, स्वर्ग, कीर्ति, पुष्टि, बल, श्री, पशु, सुख और धन-धान्य प्राप्त करता है। देवताओं से पहले पितरों को प्रसन्न करना अधिक कल्याणकारी है। श्राद्ध पक्ष में शुभ कार्य वर्जित माने गए हैं।
श्राद्ध श्राद्ध पक्ष पितरों की तृप्ति और उनकी प्रसन्नता के लिए आश्विन मास के पूरे कृष्णपक्ष में श्राद्ध किया जाता है। समयानुसार श्राद्ध करने से कुल में कोई दुखी नहीं रहता। पितरों की पूजा करके मनुष्य आयु, पुत्र, यश, स्वर्ग, कीर्ति, पुष्टि, बल, श्री, पशु, सुख और धन-धान्य प्राप्त करता है। देवताओं से पहले पितरों को प्रसन्न करना अधिक कल्याणकारी है। श्राद्ध पक्ष में शुभ कार्य वर्जित माने गए हैं।
श्राद्ध मंत्र :- “ॐ पितृगणाय विद्महे जगत धारिणी धीमहि तन्नो पितृो प्रचोदयात्। ॐ देवताभ्य: पितृभ्यश्च महायोगिभ्य एव च। नम: स्वाहायै स्वधायै नित्यमेव नमो नम:। ॐ आद्य-भूताय विद्महे सर्व-सेव्याय धीमहि।।”
श्राद्ध पूजा के लाभ
- श्राद्ध करने से व्यक्ति का बल और यश बढ़ता है|
- श्राद्ध करने से दिवंगत आत्माओं को शांति मिलती है|
- श्राद्ध करने से परिवार में क्लेश नहीं होता हैं|
- श्राद्ध करने से कुल में वीर, निरोगी एवं श्रेय प्राप्त करने वाली संताने पैदा होती हैं।
- श्राद्ध करने से पितृगण प्रसन्न रहते हैं।
- श्राद्ध करने से कुल में कोई दुखी नहीं रहता है।
श्राद्ध पूजा का महत्व
पितृपक्ष में श्राद्ध करने से पितृगण प्रसन्न रहते हैं। पितृपक्ष में पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण या पिंडदान किया जाता है। पितृ पक्ष में मृत्यु की तिथि के अनुसार श्राद्ध किया जाता है। अगर किसी मृत व्यक्ति की तिथि ज्ञात न हो तो ऐसी स्थिति में अमावस्या तिथि पर श्राद्ध किया जाता है। हाथों में कुश की पैंती (उंगली में पहनने के लिए कुश का अंगूठी जैसा आकार बनाना) डालकर काले तिल से मिले हुए जल से पितरों को तर्पण किया जाता है। पितरों की पूजा करके मनुष्य आयु, पुत्र, यश, कीर्ति, स्वर्ग, बल, सुख और धन-धान्य प्राप्त होता है|